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घर / गंग नहौन / निशाकर
Kavita Kosh से
मनुक्ख
पहिने छल वनमानुख
रहैत छल जंगलमे
फेर गाछक छालसँ
झाँपै छल
नाँगट देह
तकर बाद
रौदीक ताप
जाड़क शीतलहरि
आ बरसातक पाथरसँ बचैक लेल
बनबऽ लागल
अपन घर।
खाली माटि आ पानिसँ न´ि
फूस आ बाँससँ न´ि
पजेबा आ सिमटीसँ न´ि
अपितु बाबकी दुलार
मायक ममता
पिताक अनुशासन
आ बुचियाक किलोलसँ
बनैछ घर।
जेना चानक प्रतीक्षामे
चकोर
ओहिना परदेशी पुत्रक प्रतीक्षामे
घर।