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घर की लौंडिया नहीं है क्रान्ति / मनोज श्रीवास्तव
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घर की लौंडिया नहीं हैं क्रांति
घर की लौंडिया नहीं हैं क्रांति
कि एक इशारे पर नाचने लगेगी,
भुखा कुत्ता भी नहीं हैं
कि रोटी की तलाश में
आ ही जाएगी कभी,
वह तुम्हारी मोहताज नहीं है
कि तुम्हारे पीछे डोलती फिरेगी
दुम हिलाते-हिलाते,
अगर वह बुलाने से आती
तो रोटियां चलकर आतीं
तुम्हारा पेट भरने,
राजकुमार उडकर आते
चिरकुआंरियों को सुहागन बनाने,
ईश्वर दौडा आता
लंपट मंत्रियों से हमें बचाने,
सच, बादल का हर टुकडा
बंजारोन का घर बन जाता,
हवा का हर झोंका
नंगों का वस्त्र बन जाता,
इच्छाएं, कामधेनु बन जातीं,
प्यास तृप्ति बन जाती,
श्रद्धा, मोक्ष बन जाती,
प्रेम, उद्धार बन जाता.