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घुटन / रेणु हुसैन
Kavita Kosh से
एक घुटन है
बाहर से भीतर तक
साँस के हर छोर एक
कहां होगी ताज़ा हवा
इस वक़्त
मुझ तक पहुँचेगी भी या नहीं
ज़रुरी है इस वक़्त
खिड़की को खुला रखना
मगर ये कैसा समय है
नज़र नहीं आती एक भी खिड़की
जिसे मैं खोल दूँ
और जीवनदायिनी हवा को
अपने फेफड़ों में भर लूँ