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घूस रोॅ रास्ता बताय देॅ/ नवीन ठाकुर 'संधि'

रोज भोरे-भोर कच्ची नीनोॅ में जगाय छोॅ
कथि लेॅ हमरा बोलाय छोॅ?

होय गेलै बिहान बनावोॅ चाय,
तहूँ पीयोॅ हमरा देॅ पियाय।

एत्तें जाड़ोॅ में आसकत लागै छै,
एक्कोॅटा नौकर नै मिलै छै,
हमरा जानि केॅ तोहें अजमाय छोॅ।।

रोज भोरे-भोर कच्ची नीनोॅ में जगाय छोॅ।
रोज करै छोॅ धरफर-धरफर,
खाना बनावोॅ जल्दी जावोॅ दफतर।

पैसा कौड़ी रोॅ कुछू नै ठिकान,
लम्बा-लम्बा दै छोॅ भाशण साझेॅ बिहान।

उल्टा-सीधा हमरा समझाय छोॅ।।
रोज भोरे-भोर कच्ची नीनोॅ में जगाय छोॅ।

मिनिया बाप आरो आपन्होॅ छेकोॅ किरानी,
हुनी रोज पैसा कमाय केॅ दै छ,ै आनी।
तोहें मौज-मस्ती में करै छोॅ फुटानी,
लागै छै कोय जरूरे छै रानी।

यै सें तोयॅ हमरा बौधी बनाय छोॅ।
रोज भोरे-भोर कच्ची नीनोॅ मेंजगाय छोॅ।
हुनी भरी-भरी लानै छै झोला,
तोहें पिन्हलोॅ छोॅ ईमानदारी रोॅ चोला।

हुनी दरमाहा छोड़ी केॅ लै छै भीतरे-भीतोरॅ,
तोहें ताकतें रहोॅ उपरेॅ ऊपोॅर।

कथी लेॅ नौकरी खाली पुराय छोॅ।
रोज भोरे-भोर कच्ची नीनोॅ में जगाय छोॅ।

उनकोॅ धीया-पुतां अच्छा-अच्छा पीन्है खाय छै,
हमरोॅ धीया-पुतां हुकरी-हुंकरी ललाय छै।

जमाना छेकै लै रोॅ घूस
आखरी-आखरी में भी तेॅ लानोॅ सूझ।

रास्ता ‘‘संधि’’ कैन्है नी बताय छोॅ?
रोज भोरे-भोर कच्ची नीनोॅ में जगाय छोॅ।