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घोड़ा री नाळ / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
उण री/घुड़साल रो घोड़ा
हिण हिणावै है
अर आपरै/पगां-खुरां सूं
गा‘वै है लीद,
घोड़ा समझण लागग्या है
नोहरै रै चरणोट
बै अबै घणा चालाक
अर बदीगारा हुयग्या है,
आखै मुलक नै
चरणोट समझ‘र
चर रैया है घोड़ा
पण अचाण चुकै ई
बां‘नै ठा पड़यो
कै ऊंची कूद/अर लाम्बी कूद
मांय अबै कोई पूंच नीं,
घोड़ा हिणहिणावै
अर नाचा-कूदी करै
पण वांरै पगां हेठै
नाळ नीं।