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चंदन रुख कटाय कै / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चंदन रुख कटाय कै
एक अगड़ पलणिआ घड़ा
मेरे आंगण में अमला बो दिआ।
एक रेसम डोर बटाय के
अगड़ पलणिया झूला
मेरे अंगण...
एक धण पिआ दोनूं बैठगे
दोनूं मैं पड़ग्या न्याव
मेरे अंगण...
गोरी जो थम जन्मोगी धीअड़ी
थारे काट ल्यांगे नाक अर कान
मेरे अंगण...
राजा धी जामैगी थारी भावज
कोए हम रै जामांगे नंदलाल
मेरे अंगण...
कोए ये नो पे दस मासिआं
हो गया नंदलाल
मेरे अंगण ....
इक भली ए करी मेरे राम ने
मेरे बचगे नाक अर कान
मेरे अंगण...
गोरी हम रै कह्या हंस खेल कै
कोए थम नै करी सतभा
मेरे अंगण...