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चक्र / रेणु हुसैन
Kavita Kosh से
मन व्यथित क्यों होता है
रोज निकलता है सूरज
रोज ही आती है सुबहा
रोज उजाला आता है
टूट जाये तो चिड़िया
देखो फिर से नीड़ बनाती है
बिखर-बिखर कर लहर बेचारी
फिर साहिल पर आती है
पतझर का आना है लाज़िम
जैसे आती है बयार
मुरझाये सब फूल चमन के
खिल-खिल उठते बारम्बार
कोई उदासी नहीं स्थायी
ग़म भी रहता नहीं सदा
खुशियों का आना है लाज़िम
दुख की किस्म्त अंत बदा
मन व्यथित क्यों होता है