भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चट्टान / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
मदन महल की पहाड़ी पर
कुदरत का आश्चर्य
एक बड़ी सी असम्भव चट्टान
नीचे छोटी वाली पर टिकी हुई
मुझे याद हो आया बचपन
मां जैसे
अब गिरी कि तब