चमक है सितारों की खोने लगी ।
भरी दोपहर रात होने लगी।।
फलक पर न टुकड़ा दिखा अब्र का
मगर फिर भी बरसात होने लगी।।
लगाये रही टकटकी राह पर
है अब अपना दामन भिगोने लगी।।
भरे हैं नजारे गुलों से मगर
खुशी ख़ार आँखों में बोने लगी।।
डराती हैं अपनी ही परछाइयाँ
नयी बात कैसी ये होने लगी।।
लगी टूटने आस की नाव है
गमों की लहर अब डुबोने लगी।।
चले आओ इक बार तो लौट कर
तड़प दिल की भी आज रोने लगी।।