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चरन छिदत काँटेनि तें / नागरीदास

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चरन छिदत काँटनि ते स्रवत रुधिर सुधि नाहिं .
पूछति हौं फिरि हौं भटू खग मृग तरु न माहिं .
कबै झुकत मो ओर को ऐहैं मद गज चाल .
गर बाहीं दीने दोऊ प्रिया नवल नंदलाल .