भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलू, कनि बदलि क' देखि / शारदा झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलू, कनि बदलि क' देखी
जकर परिणाम क' सकी स्वीकार
करी किछु एहेन काज
पूर्ण गर्व सँ, क' सकी अंगीकार
चलू, कनी बदलि क' देखी
आउ, जगाबी मोन मे सहृदयता
प्रेम, आदर आ सबसँ मेल
गुण-अवगुण के संगे राखि
सबके अपन बनेबा लेल
आउ, जगाबी मोन मे सहृदयता
चलू, कनि पढ़ि क' देखी
अपना के अपन विषय बनाबी
राग, द्वेष आ कुंठा के आँकड़
अपन मोन सँ चालि हटाबी
चलू, कनि पढ़ि क' देखी
आउ चलू गाम दिस
नीपय लेल भगवतीक चिनबारि
दलान आ असोरा
अरिपन पारि धर्मराजक दुआरि
आउ चलू गाम दिस
चलू करी शिक्षा के प्रसार
धिया-पुताक लेल गामहि मे
सुनाउ पिहानी जे जागृत करै
स्वप्न देखबा लेल नेना सबके
चलू करी शिक्षा के प्रसार
जँ हम बदलब, तँ जग बदलत
छी हमही प्रतिरूप समाजक
अपने सँ सबटा उत्तर भेटत
प्रश्न ठाढ़ अछि जे चिरकालक
जँ हम बदलब, तँ जग बदलत
चलू, कनि बदलि क' देखी