चलो यार अब घर। 
हुआ मोम पत्थर॥
समझना है अब क्या
तुम्हीं मेरे रहबर। 
नदी आई मिलने
पुलकता समंदर। 
ग़ज़ल के लिए वह
भटकता है दर-दर। 
सदा साथ रहना
जो निकलूँ सफ़र पर। 
चराग़े-मुहब्बत
तो जलता कुहरकर। 
हरिक शै को रखना
हमेशा नज़र पर। 
ग़ज़ल की ये महफ़िल
सृजन से सृजनतर।