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चार आदमी / हेमन्त कुकरेती
Kavita Kosh से
छत पर ताश खेलते चार आदमी
रात को पूरे चन्द्रमा की उजास
और गली की बत्ती के भरोसे व्यक्त करते
बीच-बीच में अपनी खीज
निश्चिन्त अगली सुबह आने वाले रविवार की तरह
निरासक्त लगभग जैसे बीत चला शनिवार
डूबकर बचते, बचकर डूबते, अपनी विजय
और पराजय के बीच परखते अपनी आँख की रोशनी
दिमाग़ का हुनर हाथ की हरकत
छत पर ताश खेलते