चिंदी-चिंदी सुख पर श्रीनिवास श्रीकांत की टिप्पणी
रेखा की इन कविताओं में समय अपने पूरे संदर्भों सहित विगत होने का एहसास देता है। पारिवारिक स्तर पर बचपन में कवयित्रि ने अपने घर,आँगन, गली के आस-पास जो कुछ देखा, उसकी छाप अब भी उसके मन में बराबर बनी हुई है। 'बड़ी अम्मा की मछली आँखें', नहाकर बाल सुखाती 'छोटी चाची', वैधव्य की गठरी सिर पर टिकाए 'विधवा बुआ' और इन सबसे बढ़कर सनातन सत्य-सी 'नानी माँ' गये वक्तों की रूढ़िगत संस्कृति के बावजूद अपना एक अलग सम्मोहन पैदा करने की क्षमता रखती हैं। ये सभी निजी संदर्भ आख्यान तत्त्व से भरपूर हैं।
समय के बदलाव को चिह्नित करती हुईं इन कविताओं में रिश्तों के धीरे-धीरे टूटने और पीछे छूट जाने का आभास है रेखा ने इन्हें प्रलाप अथवा विलाप की बजाय आत्म-सम्वाद के रूप में प्रस्तुत किया है। इनमें टीस भी है और नाटकीयता भी।
अपने बसेरे की ओर लौटने की उद्दाम चाह रेखा के कवि के मूल रूप में है। मगर साथ ही यह एहसास भी है कि जो कुछ गुज़र गया है उसे उसी रूप में पाना अब सम्भाव नहीं क्योंकि इन मध्यवर्ती वर्षों में न केवल माहौल बदला है बल्कि पीढ़ियों का अंतराल भी और ज़्यादा विस्तृत हुआ है।
कवयित्री ने जीवन के चुकते हुए सुखों, समय की असारताओं और अपनी दहलीज़ पर खड़ी भविष्य की भयाक्रांत परछाईयों को पहचाना है। उसके हृदय में आंतरिक हा-हाकार की अनुगूँज है। वह इसलिए कि आने वाला समय व्यक्ति की सही पहचान को धुंधला करते हुए फरेब से अधिक और कुछ नहीं।
रेखा का रचना-संसार लोग-तत्व से भीगा हुआ है तथा इसमें एक पायेदान संस्कृति की त्रासदी देखने को मिलती है। यद्यपि वह संस्कृति लुप्त हो चुकी है फिर भी उसके निशान तुलसी चौरों,गृह पिटारियों,दीवारों दहलीज़ों और गलियों में अब भी मौजूद है। कुल मिलाकर ये कविताएं पाठक पर अपना मायिक प्रभाव छोड़ती हैउसे उद्वेलित करती हैं और एक ऐसे बिन्दु पर ले आती हैं जहाँ से वह अपने निजी जीवन में पीछे की ओर बहुत दूर तक देख सकता है।
श्रीनिवास श्रीकांत