भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिड़कली रो बुढ़ापो / कुंदन माली
Kavita Kosh से
बालपण में
सुण्यो चिड़कली
ओ ओखाणो
’’कातिया जिण रा
सूत
जाया जिण रा
पूत’’
बुढापै में
हुई बावली
फिरै पूछती
कठै सूं लायौ
म्हारी आंख्यां रौ तारौ
इसी डोढ़ी अकलः
ओ भभूत।