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चिड़िया / मल्लिका मुखर्जी

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कहाँ खो गई तुम
मेरी प्यारी चिड़िया रानी !
घर के बैठक खंड में
टंगी तस्वीर के पीछे
जगह ढूँढकर,
अपने साथी से मिलकर तुम
तिनका-तिनका चुनकर लाती,
अपना घोंसला बनाती ।
तुम्हारे सपनों के साथ
मैं अपने सपने भी बुनती !
हाथ में किताब लिए
सोफे पर बैठे मैं
घंटों तुम्हें निहारती ।

फिर एक दिन
चीं-चीं की आवाज से
घर गूँज उठता !
माता-पिता का फ़र्ज़ निभाते,
बारी-बारी अपनी चोंच में
कुछ खाना लेकर आते –
कभी नहीं थकते थे तुम !
अपनी छोटी-छोटी
आँखों में उत्सुकता लिए
तुम्हारी संतानों का
छोटे-छोटे पंख फैलाना
देखते ही बनता !

एक दिन अचानक
तुम अपने परिवार के साथ
निकल पड़ती
उस घोंसले से,
कभी न लौटने के लिए !
अपने बच्चों को
आज़ाद कर देती तुम
आसमान की विशालता में !
अगले मौसम तक
मुझे इंतज़ार रहता
तुम्हारे लौटने का ।
अपने बच्चों के प्रति
इतना प्रेम और
इतनी अनासक्ति !

लौट कर आओ एक बार फिर
चिड़िया रानी !
हमारे मकानों को
घर बनाओ,
हमें जीवन का मर्म सिखाओ !