चित्त मिले तो सब मिले,
नहिं तो फ़ुकट<ref>व्यर्थ</ref> संग ।
पानी पथर येक<ref>एक</ref> ही ठौर<ref>जगह</ref>,
कौर<ref>कोना</ref> न भिगे अंग ।।
भावार्थ :
जब हृदय से हृदय मिलता है, तभी सच्चा आनन्द प्राप्त होता है, अन्यथा एक-दूसरे के साथ रहना व्यर्थ है। जैसे पानी और पत्थर साथ रहते हैं, फिर भी पत्थर को एक कोना भी नहीं भीगता है।
शब्दार्थ
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