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चित्र तुम, पट मैं / रामगोपाल 'रुद्र'
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चित्र तुम, पट मैं; अलग भी कब अलग?
तरलता मुझमें नहीं, तो क्या हुआ?
तरल कूची से मुझे तुमने छुआ!
धार तुम, तट मैं; अलग भी कब अलग?
मधुपता मुझमें नहीं, तो क्या हुआ?
दर्द का स्वर है, यही क्या कम दुआ!
गन्ध तुम, रट मैं; अलग भी कब अलग?
पूर्णता मुझमें नहीं, तो क्या हुआ?
तुम स्वयं ढलते रहे; मैं कब चुआ!
नीर तुम, घट मैं; अलग भी कब अलग?