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चींटियाँ / नवल शुक्ल
Kavita Kosh से
चींटियाँ बहुत पहले पहुँच जाती हैं
नष्ट होते हुए के पास
काम की तरह।
प्रेम,पुण्य, दान, घृणा
मृत्यु की तरह मुक्त समेटतीं
चलती हैं
इंतज़ार नहीं करतीं।