चुआ चन्नन अंग लगाई कामिनी करत सिंगार / भोजपुरी
चुआ चन्नन अंग लगाई कामिनी करत सिंगार।
जहिया से ऊधो मधउवापुर गइले, बीती गइले मास असाढ़,
कन्हैया घर ना आवे जी।।१।।
सावन री सखि, सरब सुहावन रिमझिम बरसत देव,
एक मोर बीझेली रेशम के चोली, चीरवा धूमिल होइ जाइ,
कन्हैया घर ना आवे जी।।२।।
भादो री सखि, भरेली मेधावन, दूजे अन्हरिया के रात,
लवका जो लवके, बिजली जे तड़के, केकरे ओसरवा होइबों ठाढ़,
कन्हैया घर ना आवे जी।।३।।
कुआर ही री सखि, कुँअरा विदेसे, बिजुबन कुंहरत मोर
मोरवा के बोली सूनी हिया मोरे साले, सूनी जिया अब फाटे,
कन्हैया घर ना आवे जी।।४।।
कातिक री सखि, लागी पूर्णवांसी, सब सखि गंग असीलान,
सब सखी पेन्हे पाट पीतम्बर, हम धनि लुगरी पुरान रे,
कन्हैया घर ना आवे जी।।५।।
अगहन री सखि, गोरी गइये दहो दुख सहलो ना जाई, इहो दुख सहो मोरा कुबरी सवतिया, जिन कान्हता रखली भोराइ,
कन्हैया घर ना आवे जी।।६।।
पूस हीं री सखि, परत फुहेरी, भींजत लामी-लामी केस,
एक मोरे भींजेला रेशम के चोली, नैना भींजेले अनमोल रे,
कन्हैया घर ना आवे जी।।७।।
माघ हीं री सखि, पड़े निजु ठार, सब सखी भराई
हमरो पिया रहितें, भरउँती, खेपती में मघवा के जाड़ रे,
कन्हैया घर ना आवे जी।।८।।
फागुन की सखि रंग महीने, सब सखी अबीर घोराई,
हमरो पिया रहतें, अबीर घोरउतीं, खेलतीं में रंग-गुलाब रे,
कन्हैया घर ना आवे जी।।९।।
चइत री सखी, फूले बन टेसू, सब सखी फूला लोढ़े जाई
हमरो पिया रहतें, फूला लोढ़े जाइतीं, रहतीं मैं पियवा के साथ,
कन्हैया घर ना आवे जी।।१0।।
बइसाख री सखि, बंसवा कटाइ, चुनि-चुनि बंगला छवाई,
हमरो पिया रहतें, बंगला छवइतीं, रुचि-रुचि कटतीं दुआर रे,
कन्हैया घर ना आवे जी।।११।।
जेठ हीं री सखि, भेंट जे भइले, पूजी गइले मनवा के आस,
दोआदसी प्रमु चनन रगड़ी, पूजी गइले बारहो जामात रे,
कन्हैया घर ना आवे जी।।१२।।