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चुप्पी छाई, बात करो अब / अश्वघोष

चुप्पी छाई बात करो अब
है तनहाई, बात करो अब

आतुर है ऊपर आने को
इक गहराई, बात करो अब

तोड़ रहा भीतर ही भीतर
ग़म हरजाई, बात करो अब

झूठ के महलों में बैठी है
चुप सच्चाई, बात करो अब

मन में डर, डर में सन्नाटा
मेरे भाई, बात करो अब !