भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेहरा / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
बेईमान
ईमानदारी के
मक्कार
सच्चाई के
अधर्मी
धर्म के वस्त्र पहने हुए हैं
पुण्य की भाषा को हड़प लिया है
पाप ने
सौंदर्य के आवरण में
अपने को छिपा रही है
कुरूपता
शैतान सुरक्षित है निश्चिन्त
देवालय के किले में
मूर्तियों के प्रतीकों से करता है वार
छिप कर मंदिर में
मस्जिद में
सब कुछ उलट-पुलट गया है
झूठ बोलने लगा है
चेहरा।