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चेहरा / मक्सीम तांक
Kavita Kosh से
एक अजायबघर में
कवि का चेहरा टँगा हुआ है
भावशून्य निर्जीव निरीह
इसे तोड़ दो
या फिर कहीं छिपा दो
सोचो
अगर कहीं यह
ऐसा होता
तो अब तक ज़िन्दों में होता