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छाता / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
सबके छाते काले,
मेरा सात रंग का छाता।
बारिश हो या धूप सभी से
मुझको सदा बचाता।
तेज हवा में लेकिन यह
अक्सर उल्टा हो जाता।
तब झंझट-सा लगता मुझको,
कुछ भी समझ न आता।
इसीलिए जिस दिन भी इसको
अपने साथ न लाता।
बहुत-बहुत ‘मिस’ करता है,
तब मुझको मेरा छाता।