भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जग बदलेगा, किन्तु न जीवन / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जग बदलेगा, किंतु न जीवन!

क्या न करेंगे उर में क्रंदन
मरण-जन्म के प्रश्न चिरंतन,
हल कर लेंगे जब रोटी का मसला जगती के नेतागण?
जग बदलेगा, किंतु न जीवन!

प्रणय-स्वप्न की चंचलता पर
जो रोएँगे सिर धुन-धुनकर,
नेताओं के तर्क वचन क्या उनको दे देंगे आश्वासन?
जग बदलेगा, किंतु न जीवन!

मानव-भाग्य-पटल पर अंकित
न्याय नियति का जो चिर निश्चित,
धो पाएँगें उसे तनिक भी नेताओं के आँसू के कण?
जग बदलेगा, किंतु न जीवन!