भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जड़ें / स्नेहमयी चौधरी
Kavita Kosh से
अन्दर कभी समुद्र-मंथन चलता है,
कभी ज्वालामुखी फूटता है,
कभी दावाग्नि लगती है,
कभी बर्फ़ जमती है,
कभी बरसात होती है,
कभी आंधी-तूफ़ान चलता है,
सब कुछ बाहर से क्यों नहीं गुज़र जाता?
जड़ें तो न हिलतीं
- पेड़ की।