भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जनगीत / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बोल उठी हलचल, ज़माना बदलेगा
आज नहीं तो कल, ज़माना बदलेगा*

पूंजीपति की साजिश है कितनी गहरी
संसद और अदालत है कितनी बहरी
जब गरज उठेंगे हम, ज़माना बदलेगा……

ये पुलिसिये झूठे और मक्कार सही
देश के नेता ये सारे गद्दार सही
जब चलेंगे हम एक साथ, ज़माना बदलेगा….

राज कर रहे देश पे सब पैसेवाले
भूखे सोते हैं सारे मेहनतवाले
जब अपना होगा राज, ज़माना बदलेगा…
       
1996, * एक मराठी जनगीतकार के गीत का मुखड़ा।