भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जन्मदिन / पुष्पिता
Kavita Kosh से
जन्मदिन
दिलाते हैं याद
उम्र के घटने की
कम करते हैं सपनों की उम्र
छीन लेते हैं कुछ इच्छाएँ
भर देते हैं न भरने वाला उम्र का खालीपन
चलते हुए पाँव
पूरी करते हैं उम्र की परिक्रमा प्रतिवर्ष।
आँखें मढ़ना चाहती हैं
अपनों के चेहरे पर आत्मीयता का हर्ष
जो वर्ष भर में घिस जाता है स्वार्थों की रगड़ से
जन्मदिन के अवसर पर
मुस्कराहट पी लेना चाहती है खुशी
शुभकामना देने वाले हर हँसते हुए चेहरे से
जबकि ओंठ जानते हैं मुस्की का खोखलापन।
जन्मदिन के उत्सव पर
हाथ मिलाते समय
हथेलियाँ हथेलियों में
सिमट समाकर भूल जाना चाहती हैं
संपूर्ण क्लेश द्धेष ईर्ष्या और भेदी मन-मुटाव
जबकि जानती हैं
मिलने भर के पल का है यह क्षण भर का मिलन
एक विस्मृति में बदलने के लिए।