भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जन्मभूमि के प्रति समर्पण / हावर्ड डेनिसन मोमिन
Kavita Kosh से
वचन देता हूँ मैं तुम्हें-- नि:शेष होकर,
उंड़ेल दूंगा मैं अपने प्रेम की डलिया तुम पर,
ओ मेरी जन्मभूमि,
बिना पूछे कारण-- चाहे मांगा जाए जितना
मैं सबसे अनमोल वस्तु को रखता हूँ तुम्हारी वेदी पर,
और अंत में यदि मांग करो तुम,
मैं बेहिचक हो जाऊंगा बलिदान तुम्हारी वेदी पर,
कहते हैं बहुत समय पूर्व था एक देश मानस का--
प्रबुद्ध जन की प्रिय भूमि,
अनगिनत थीं उसकी सीमाएँ, निराकार था उसका राजा,
निष्ठावान हृदय मेरा दुर्ग है; उसका गौरव, उसका धैर्य,
हृदय से हृदय तक विस्तीर्ण होने दो यह साम्राज्य,
उसका शान्तिपूर्ण तौर-तरीका और मृदु आचरण।
मूल गोरा भाषा से अनुवाद : डा० श्रुति