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जब उड़ी नोच डाली गई / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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जब उड़ी नोच डाली गई।
ओढ़नी नोच डाली गई।

एक भौंरे को हाँ कह दिया,
पंखुड़ी नोच डाली गई।

रीझ उठी नाचते मोर पे,
मोरनी नोच डाली गई।

खूब उड़ी आसमाँ में पतंग,
जब कटी नोच डाली गई।

देव मानव के चिर द्वंद्व में,
उर्वशी नोच डाली गई।