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जब विष्‍णु शेष की शय्या त्‍याग उठेंगे / कालिदास

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शापान्‍तो मे भुजगशयनादुत्थिते शार्ङ्गपाणौ
     शेषान्‍मासान् गमय लोचने मीलयित्‍या।
पश्‍चादावां विरहगुणितं तं तमात्‍माभिलाषं
     निर्वेक्ष्‍याव: परिणतशरच्‍चन्द्रिकासु क्षपासु।।

जब विष्‍णु शेष की शय्या त्‍यागकर उठेंगे
तब मेरे शाप का अन्‍त हो जाएगा। इसलिए
बचे हुए चार मास आँख मींचकर बिता
देना। पीछे तो हम दोनों विरह में सोची हुई
अपनी उन-उन अभिलाषाओं को कार्तिक
मास की उजाली रातों में पूरा करेंगे।