भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जय-जात्रा !/ कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बगै है
आद स्यूं ईं अन्धेरो
दाबतो च्यानणैं रा खोज
पण फाटतां ही भाख
बंध ज्यावै
बापड़ै रे पगां में थड़ा,
ओसाणचूक हुयोड़ो
मांडै
दो च्यार अळूघतै तारां स्यूं राड़
बवै लोही रा रेळा
रंगीजै अगूण रै फळसै री थळी
आं नान्हीं जोतां रै
बळिदान स्यूं अजाण
मोटो सूरज
रोज सरू करै
आप री जय-जात्रा