भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जरा नजदीक आना चाहता था / स्मिता तिवारी बलिया
Kavita Kosh से
जरा नजदीक आना चाहता था
गले लगकर रुलाना चाहता था।
मुहब्बत थी उसे मुझसे बहुत ही
मगर दिल मे दबाना चाहता था।
नजर भर देखकर मेरी नजर में
नजाकत से चुराना चाहता था।
हथेली पर उठाके अश्क़ मेरे
तबस्सुम को बचाना चाहता था।
जुबाँ से कह न पाया था अभी तक
जिगर जो भी सुनाना चाहता ठगा।
मिले है स्मिता जो ज़ख्म उसको
न जाने क्यों छुपाना चाहता था।