भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जवाँ होती हसीं लड़कियाँ-2 / शाहिद अख़्तर
Kavita Kosh से
जवाँ होती हसीं लड़कियाँ
सिर्फ़ हसीन होती हैं ।
सिर्फ़ हुस्न होती हैं ।
सिर्फ़ ज़िस्म होती हैं ।
कौन झाँकता हैं उनकी आँखों में
कि वहाँ सैलाब क्यों है ?
कौन टटोलता है उनके दिल को
कि वहाँ क्या बरपा है ?
जवाँ होती हसीं लड़कियाँ
हसीं तितलियों के मानिंद हैं ।
हर कोई हविस के हाथों में
उन्हें क़ैद करने को दरपा है ।
जवाँ होती हसीं लड़कियाँ
कब तलक रहें महुए इंतज़ार ?
कब तलक बचाएँ ज़िस्मो-जान?
कब तलक सुनाएँ दास्तान-ए-दिल फिगार ??