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जहिया सेॅ दुर्दिन सेँ भेंट भेलै / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
जहिया सेँ दुर्दिन सेँ भेंट भेलै
हमरोॅ दुख अगहन मँे जेठ भेलै।
सब्भै केॅ दुख छेलै कुछ-न-कुछ
लोरोॅ सें रपटैलोॅ कुछ-न-कुछ
लागै छै सबटा दुख हसती-हसौती
हमरोॅ ई जिनगी छै मेंठ भेलै।
एक तेॅ बैशाखे रँ जरते ही छेलाँ
वै पर कुम्हारोॅ के आबा रँ भेलाँ
तहियो नै भागोॅ के मनसा ई रीझै
आगिन सुरूजे आय हेट भेलै।
एत्तेॅ तेॅ आँखी में कभियो नै लोर रहै
अंग-अंग लहुवैलोॅ विलखैलोॅ ठोर रहै
आबेॅ लड़ैये-मैदानोॅ रँ जिनगी छै
विपदा के खम-खम परेट भेलै।
केकरो भरोसॉे नै-देवो के, नरियो के
कटियो टा आशा की-भीभोॅ रङ बरियो के
सुरकी जाय सपना केॅ, सुक्खो के लोॅत-पात
दुर्दिन-बिलहामोॅ रोॅ पेट भेलै।