भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जहिया सेॅ दुर्दिन सेँ भेंट भेलै / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जहिया सेँ दुर्दिन सेँ भेंट भेलै
हमरोॅ दुख अगहन मँे जेठ भेलै।

सब्भै केॅ दुख छेलै कुछ-न-कुछ
लोरोॅ सें रपटैलोॅ कुछ-न-कुछ
लागै छै सबटा दुख हसती-हसौती
हमरोॅ ई जिनगी छै मेंठ भेलै।

एक तेॅ बैशाखे रँ जरते ही छेलाँ
वै पर कुम्हारोॅ के आबा रँ भेलाँ
तहियो नै भागोॅ के मनसा ई रीझै
आगिन सुरूजे आय हेट भेलै।

एत्तेॅ तेॅ आँखी में कभियो नै लोर रहै
अंग-अंग लहुवैलोॅ विलखैलोॅ ठोर रहै
आबेॅ लड़ैये-मैदानोॅ रँ जिनगी छै
विपदा के खम-खम परेट भेलै।

केकरो भरोसॉे नै-देवो के, नरियो के
कटियो टा आशा की-भीभोॅ रङ बरियो के
सुरकी जाय सपना केॅ, सुक्खो के लोॅत-पात
दुर्दिन-बिलहामोॅ रोॅ पेट भेलै।