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ज़िन्दगी मछली है जैसे / अश्वघोष
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी मछली है जैसे मुफ़लिसी के जाल में।
कूद जाने को तड़पती है समय के जाल में।
जेब का इतिहास ही तो पेट का भूगोल है,
ये समझना-जानना है आपको हर हाल में।
जो मिली इमदाद उसको खा गए सरपंच जी,
देर तक चर्चा हुआ ये गाँव की चौपाल में।
न्याय की आशा न करना, चौधरी से गाँव के
वो तो बस एक भेड़िया है आदमी की खाल में।
भूख भी क्या चीज है. गुस्सा भी है, फ़रियाद भी
भूख ने ही चेतना को बल दिया हर काल में।