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ज़िन्दगी होती गई दुश्वार भइये / विनोद तिवारी

ज़िन्दगी होती गई दुश्वार भइये
क्या मनाएँ अब कोई त्यौहार भइये

कितना बलशाली है भष्टाचार भइये
देश का क़ानून है लाचार भइये

बढ़ती आबादी बढ़ी बेरोज़गारी
उस पर मँहगाई की भीषण मार भइये

थाह अपने मन की वह लेने न देगा
हो गया है आदमी हुशियार भइये

क्या ख़रीदें कब कहाँ कैसे ख़रीदें
ज़िन्दगी भूलों का है बाज़ार भइये

नफ़रतों की गंध फैली है हवा में
साक्षी है आज हर अख़बार भइये

रफ़्ता-रफ़्ता बन चला नासूर फोड़ा
ढूँढिए जल्दी कोई उपचार भइये