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जाति / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
नहीं होती
साधुओं की
कोई जाति
ना ही रोटी की !
जाति तो होती है
कमाने वालों
और पकाने वालों की !
भांति-भांति के पकाने वाले
भांति-भांति की रोटी
भांति-भांति के साधु
परन्तु
भूख की भांति
एक भाति !
खाने के लिए
एक से दांत
पचाने के लिए
एक सी आंत !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"