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जानै जौ कि जानै जाता / कैलाश झा ‘किंकर’
Kavita Kosh से
जानै जौ कि जानै जाता ।।
मजदूरोॅ सब चललै दिल्ली,
टिकट रहतौं चौंकै पिल्ही,
तैय्यो दस टकिया लेॅ टी.टी
बहुत लगैलकै अप्पन माथा ।
शिक्षक नै स्कूल मेॅ पढ़बै,
बच्चों दिन भर घासे गड़है,
बिडियो कैलका विजिट एकदिन
गुरु शिष्य मेॅ अद्भुत नाता ।
मोटर साइकिल नै मिललोॅ छै,
दुल्हिन के किस्मत जरलोॅ छै,
पड़ताड़ित बेटी केॅ देखी
कानैै-पीटै छै अब माता ।
कुर्सी बचबै के फेरा मेॅ,
नेता छै खुद अँधेरा मेॅ,
के विकास के बात सुनै छै
स्वारथ के सब गौरव गाथा ।
हत्यारा आजाद घुमै छै,
निर्दोषी जेलोॅ मेॅ जुमै छै,
न्यायाधीश के बात कहाँ छै
मुंसिफ बनलै भाग्य-विधाता ।