जाल सय्याद फिर से बिछाने लगे
क्या परिंदे यहाँ आने जाने लगे
खेत के पार जब कारखाने लगे
गाँव के सारे बच्चे कमाने लगे
फिर से दहला गए शहर को चंद लोग
हुक्मरां फिर कबूतर उड़ाने लगे
वो जो इस पर अड़े थे कि सच ही कहो
मैंने सच कह दिया, तिलमिलाने लगे
वक्त की पोटली से हैं लम्हात गुम
होश अब भी तो मेरा ठिकाने लगे
चंद खुशियाँ जो मेहमां हुईं मेरे घर
रंजो गम कैसा तेवर दिखाने लगे
मेरे अशआर में जाने क्या बात थी
लोग तडपे, मगर मुस्कुराने लगे