भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जितना तुम / कीर्ति चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जितना तुम रोते हो उतना मैं भी रोता,
जितना तुम खोते हो, उतना मैं भी खोता
जैसा कह पाते हो वैसा यदि कह लेता
दर्द तुला पर तुम्हीं बराबर मैं भी देता।