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जित्तै उडीक / चंद्रप्रकाश देवल
Kavita Kosh से
लो, म्हैं कर लीवी संपूरण
जूंण, समाज अर इण सईका री भूंडाई
धकै कांईं करूं?
उथेल दी सगळी विसंगताऊ थितां
थेपड़ी दाईं
सावळ सुखावण री गरज सूं
कठैई आल नीं रैय जावै पींदै
भासा रा गिंडोळा
सगळी ठौड़ सारिसा लाधै
ओपमा आपरै हाथबसू है
इण सांरू वांनै ममोलियया कैय बखांण दो
सांवण री डोकरी कैवतां ई
अेक खास रंग अर कंवळास जलमै
जिण सूं कांईं
वा थांरी थोड़ी है
पाठक ई घड़ी-खांण भरमीज जावौ
सेवट पाछौ
वांनै पूगणौ है उणीज कबाड़ में
जठै कवियां नै
वांरी कविता सूं नीं ओळख
वांरै नांव सूं जांणीजाण रौ समतळ चोवटौ है
अरथां में मारग भूल्योड़ी
ओळियां रै बारै आवण तांईं
म्हारा जीव
उडीक!