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जिनके परस-दरस-सुमिरन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग नारायणी-ताल त्रिताल)
जिनके परस-दरस-सुमिरन तें महापाप सब मिटैं तुरंत।
सहज उदार-सुभाव कर रहे जग-कल्यान नित्य वे संत॥
फैल रही जिन तें सब जग में निर्मल भगवत्-ज्योति अपार।
सकल ताप-तम हर, करती सो उज्ज्वल भगति-ग्यान-विस्तार॥