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जिसे देखो परेशाँ आजकल है / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

 

जिसे देखो परीशाँ आजकल है
सभी की नींद में कोई ख़लल है

यहाँ रहते हुए अक्सर लगा है
हमारा शहर जंगल की नकल है

हमारी सोच क्यूँ पथरा गई है?
हमारे ज़ेहन में किसका दख़ल है

फ़क़त पानी नहीं आता अगर्चे
यहाँ बरसों पुराना एक नल है

सभी कुछ देख सुन कर कह रहे हैं
कि जो भी है ख़ुदा का ही फ़ज़ल है

न अंधा है न गूंगा है न बहरा
तो फिर यह आदमी क्या दरअसल है.