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जीना है / एकांत श्रीवास्तव

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फूलों की आत्‍मा में बसी
ख़ुशबू की तरह
जीना है
अभी बहुत-बहुत बरस

मुश्किलों को उठाना है
पत्‍थरों की तरह
और फेंक देना है
जल में 'छपाक' से

हँसना है बार-बार
चुकाना है
बरसों से बकाया
पिछले दुखों का ऋण

पोंछना है
पृथ्‍वी के चेहरे से
अँधेरे का रँग

पानी की आँखों में
पूरब का गुलाबी सपना बनकर
उगना है
अभी बहुत-बहुत बरस।