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जैसे शिशु ढूँढता / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
जैसे कोई ढूँढता है
खोई हुई किताब
घर में इधर -उधर
किसी पुराने रैक में,
खोई पगडण्डी पर
अपनी डगर,
बरसों पुराना छोड़ा
अपना घर,
किसी बच्चे की
निर्मल मुस्कान,
पूछता है अपने आँसुओं से
खोए साथी का पता,
भेंट में दी डायरी या पेन
और खोई कमीज
जो किसी ने छुपा दी
कहीं तहखाने में
जैसे शिशु ढूँढता
अपनी खोई हुई माँ को
वैसे ही मैं
तुम्हें ढूँढता हूँ !