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जौ मेरे तन होते दोय / नागरीदास
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जौ मेरे तन होते दोय.
मैं काहू ते कुछ नहिं कहतो,मोते कछु कहतो नहिं कोय.
एक जो तन हरि विमुखन के सँग रहतो देस-विदेस.
विविध भांति के जग सुख दुख जहँ,नहिं भक्ति लवलेस.
एक जौ तन सतसंग रंग रँगि रहतो अति सुख पूर.
जन्म सफल करि लेतो रज बसि जहँ ब्रज जीवन मूर.
द्वै तन बिन द्वै काज न ह्वै हैं,आयु तो छिन छिन छीजै.
नागरीदास एक तन तें अब कहौ काह करि लीजै.