भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झील एक शब्‍द / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झील
लहराता हुआ
एक शब्‍द
कि जिसे देखकर
कविता के मुँह में
पानी आ जाए

लहर ऐसी
कि कविता में
कहानी आ जाए
और कहानी में
कविता छा जाए

झील लहराता हुआ
एक शब्‍द
सहेजे हुए
कविता में पानी
और पँक्‍तियों के बीच
सँवारे हुए प्‍यास
पानी की
पानी प्‍यार है

पानी प्‍यार है
पृथ्‍वी के लिए

झील
प्‍यार के लिए
ख़ूबसूरत बस्‍ती है

कश्‍ती कहाँ है
चलो मझधार में
मीठे गीत गा-गा कर
हम पानी का मन बहलाते हैं