भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झुठलाया मुझको / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चाँद आकाश छोड़ चला तारे बहुत गमगीन हैं,
 यूँ चाँद की कहानी से उसने बहलाया मुझको।

रात बरी हुई, रात की रानी पर इल्ज़ाम संगीन है,
फिर भी महकेगी कहके उसने सुलाया मुझको।

ज्वार-भाटा है समन्दर में, वह मल्लाह ताज़तरीन है,
लहरों का वश कुछ नहीं, मज़ाक बताया मुझको।

पैमाने खाली हैं, मधुशाला में भीड़ बहुत रंगीन है,
मधुबाला भरेगी रात भर, उसने समझाया मुझको।

आज हो तारीफ ए इंसाफ, कि 'कविता' बेहतरीन है,
इसे जज़्बात कह हर बार उसने झुठलाया मुझको ।
-0-