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टाबर - 4 / दीनदयाल शर्मा
Kavita Kosh से
खेलणियौ तोड़तांईं
पड़ै
टाबरां रै थाप
अर सुणणी पड़ै
बानै
उळ्टी-सीधी झिड़क्यां
मा-बाप री
कै इत्तौ
मूंगौ खेलणियौ
तोड़ दियौ
ल्यांवतांईं
खेलणियै सारू
टाबरां री
अबूझ आडी नै
कुण सुळझा सी
उतर'र
आ सी कांईं
आभै सूं
कोई औतार।